ओरे मनवा तू तो बावरा है
तू ही जाने तू क्या सोचता है
तू ही जाने तू क्या सोचता है बावरे
क्यूँ दिखाए सपने तू सोते जागते
जो बरसे सपने बूँद बूँद
नैनों को मूँद मूँद
(नैनों को मूँद मूँद )
जो बरसे सपने बूँद बूँद
नैनों को मूँद मूँद
कैसे मैं चलूँ , देख न सकूं
अनजाने रास्ते
गूंजा सा है को इकतारा इकतारा , गूंजा सा है को इकतारा
गूंजा सा है को इकतारा इकतारा , गूंजा सा है को इकतारा
धीमे बोले को i इकतारा इकतारा , धीमे बोले कोई इकतारा
गूंजा सा है को इकतारा इकतारा , गूंजा सा है को इकतारा
सुन रही हूँ सुध बुध खोके कोई मैं कहानी
पूरी कहानी है क्या किसे है पता
मैं तो किसीकी होके यह भी न जानी
रुत है ये दो पल की या रहगी सदा
(किसे है पता … किसे है पता )
जो बरसे सपने बूँद बूँद
नैनों को मूँद मूँद
कैसे मैं चलूँ , देख न सकूं
अनजाने रास्ते
गूंजा सा है को इकतारा इकतारा , गूंजा सा है को इकतारा
गूंजा सा है को इकतारा इकतारा , गूंजा सा है को इकतारा
धीमे बोले को i इकतारा इकतारा , धीमे बोले कोई इकतारा
गूंजा सा है को इकतारा इकतारा , गूंजा सा है को इकतारा
Monday, January 25, 2010
Friday, May 18, 2007
गोल गप्पे
मै एक भोपाली हूँ।
अधिकांश लोग इस शहर को सिटी आफ़ लेक्स या गैस त्रासदी से जानते हो। मेरे बचपन की बेहतरीन यादें यहाँ से जुडी हुई है। प्रचलित आस्था के विपरीत अधिकांश भोपालियॊं "नवाबी शौक" नही पालते :-)
शोले के किरदार सूरमा भोपाली ने टर्म "भोपाली" को एक नया आयाम दिया।
मुझे पसन्द है गोलगप्पे......दही बडे... जी हाँ....मुझे मित्रगण पेटू के नाम से भी जानते है। अब ये संयोग है या वास्तविकता, पता नही, मगर मैने भोपाल के ज्योति टाकीज काम्प्लेक्स मे स्थित चाट की दुकान से स्वादिष्ट गोलगप्पे कहीं नही खाये।
यहाँ पर्थ मे आजकल भारतीय़ दुकानो मे रेडिमेड गोलगप्पा किट मिलता है। विक्ल्प के अभाव मे इसी से काम चला लेते है। हमारी श्रीमती जी हमारे इस शौक से परेशान है। कारण ये है कि इस गोलगप्पे किट से जूझ कर सब तैयार करके खाने बैठे कि पता चला कि आधे से ज्यादा गोल गप्पो कि हालत इतनी खस्ता है कि हल्के से दबाव से चूरण बन जाते है। एकाध गप्पा ही अपनी साख संभाल पाता है।
ऐसे कोसते हुए मै और हमारी मैडम , उस किट को समाप्त करते है। कसम खाते है कि अब यह अड्वेंचर फ़िर न दोहरायेंगे।
मगर जिह्वा ने वश मे आ कर फ़िर वो किट खरीद लेते है।
अब की इंडिया जायेंगे तो पूरी कसर निकालेंगे।
तब तक के लिये गोल गप्पा किट से ही काम चलाना पडेगा।
Thursday, May 17, 2007
मेरी पसन्द
फ़िल्म ’सिलसिला’ से मुझे पसन्दीदा गीत के बोल
-------------------------------------------------
मै और मेरी तन्हाई अक्सर ये बाते करते है
तुम होती तो कैसा होता ?
तुम ये कह्ती , तुम वो कहती,
तुम इस बात पे हैरां होती ?
तुम उस बात पे कितनी हसंती?
तुम होती तो ऐसा होता ?
तुम होती तो वैसा होता ?
मै और मेरी तन्हाई अक्सर ये बाते करते है.
ये रात है या तुम्हारी ज़ुल्फ़ें खुली हुई है?
है चांदनी ये तुम्हारी नजरों से मेरी राते धुली हुई है,
ये चांद है या तुम्हारा कंगन?
सितारे है या तुम्हारा आंचल?
हवा का झोंका है या तुम्हारे बदन की खुश्बू?
ये पत्तियों की है सरसराहट ?
कि तुमने चुपके से कुछ कहा है?
ये सोचता हू मै कब से गुमसुम
कि जब मुझ को भी ये खबर है
कि तुम नही हो,
कहीं नही हो,
मगर ये दिल है कि कह रहा है
तुम यहीं हो,
यहीं कही हो!
मजबूर ये हालात है
उधर भी
इधर भी,
तन्हाई के एक रात इधर भी
और उधर भी
कहने को बहुत कुछ है
मगर किस से कहें हम?
कब तक यू ही खामोश रहे
और सहे हम
दिल कहता है दुनिया कि हर रस्म उठा दें
दीवार जो हम दोनो मे है वो गिरा दे
क्यो दिल मे सुलगते रहे?
लोगों को बता दे
हां हम को मुहब्बत है ....मुहब्बत है...मुहब्बत
अब दिल मे ये बात
उधर भी है
इधर भी
-------------------------------------------------
मै और मेरी तन्हाई अक्सर ये बाते करते है
तुम होती तो कैसा होता ?
तुम ये कह्ती , तुम वो कहती,
तुम इस बात पे हैरां होती ?
तुम उस बात पे कितनी हसंती?
तुम होती तो ऐसा होता ?
तुम होती तो वैसा होता ?
मै और मेरी तन्हाई अक्सर ये बाते करते है.
ये रात है या तुम्हारी ज़ुल्फ़ें खुली हुई है?
है चांदनी ये तुम्हारी नजरों से मेरी राते धुली हुई है,
ये चांद है या तुम्हारा कंगन?
सितारे है या तुम्हारा आंचल?
हवा का झोंका है या तुम्हारे बदन की खुश्बू?
ये पत्तियों की है सरसराहट ?
कि तुमने चुपके से कुछ कहा है?
ये सोचता हू मै कब से गुमसुम
कि जब मुझ को भी ये खबर है
कि तुम नही हो,
कहीं नही हो,
मगर ये दिल है कि कह रहा है
तुम यहीं हो,
यहीं कही हो!
मजबूर ये हालात है
उधर भी
इधर भी,
तन्हाई के एक रात इधर भी
और उधर भी
कहने को बहुत कुछ है
मगर किस से कहें हम?
कब तक यू ही खामोश रहे
और सहे हम
दिल कहता है दुनिया कि हर रस्म उठा दें
दीवार जो हम दोनो मे है वो गिरा दे
क्यो दिल मे सुलगते रहे?
लोगों को बता दे
हां हम को मुहब्बत है ....मुहब्बत है...मुहब्बत
अब दिल मे ये बात
उधर भी है
इधर भी
हाय्र री भारतीय क्रिकेट टीम
क्या हो गया है भारतीय क्रिकेट टीम को?
क्या सांप सूंघ गया है या लकवा मार गया है?
मुझे वो समय याद है, जब शारजाह मे भारत और पाकिस्तान का मैच आयोजित होता था. आयोजक एवं सट्टेबाज जानबूझ कर शुक्रवार को ही चुनते थे. बहाना ये होता था कि शुक्रवार को सार्वजनिक अवकाश होता है. असलियत मे यह पाकिस्तान टीम का मनोबल उत्साहित करने की एक ओछी हरकत थी. यह एक आम धारणा है कि जुम्मे का दिन पाकिस्तान के लिये भाग्यशाली होता है. उपर से अम्पाय्ररों को खरीद लिया जाता था. याद रहे उस समय थ्रर्ड अम्पाय्रर , स्ट्म्प कैमरा या पिच पर माइक नही हुआ करता था.
पाकिस्तानी क्रिकेटर , खास कर विकेट कीपर परोक्ष रुप से भारतीय बैट्स्मैन को गाली बकते थे. पाकिस्तानी टीम के समर्थक भी गाली गलौज मे पीछे नही रहते थे.
उल्लेखनीय बात यह थी कि इन सब के बावजूद भारतीय टीम मैच जीत कर आती थी.
सवाल ये उठता है कि क्या अंतर है आज की टीम मे और उस समय की टीम मे?
उत्तर एकदम सरल है. पैसा, धन, रोकडा, रुपया, रकम..........आप चाहे किसी नाम से पुकार ले.
उस समय के क्रिकेटर को सट्टेबाज खरीद नही पाये थे. मगर आज स्थिथि कुछ और ही है. टीम का चयन वो लोग करते है जिन्होने बल्ला पकडा ही न हो जिन्दगी मे. खेल मे जीते या हारे, इसका फ़ैसला सट्टेबाज करते है. टीम मे बने रहना इस बात पर निर्भर करता है कि आप किसको जानते है...या कितनी जुगाड लगा सकते है.
यदि आपने सुभाश घई की "इकबाल" नामक चलचित्र देखी हो तो , आप मेरा पक्ष समझ सकते है.
अभी हाल मे ही वर्ल्ड कप मे भारतीय टीम की शर्मनाक हार के बाद जब सौरव गांगुली कोलकाता पहुंचे , तो उनका एक विजेता की तरह स्वागत हुआ.वाह री मूढ जनता ! सचिन तेंदुलकर वर्ल्ड कप से पहले घॊषित करते है कि यदि उनके शरीर ने साथ दिया तो वो अगले वर्ल्ड कप मे भी खेलना चाहेंगे ,
आखिर कब ये तक वरिष्ट खिलाडी जौंक की तरह भारतीय टीम मे चिपके रहेंगे? कब इनको अकल आयेगी कि उमर ढल चुकी है और अल्विदा कहने का समय आ गया है.
सचिन और सौरव ने जो अब तक देश की टीम के लिये किया है वह उल्लेखनीय है. हम उनके योग दान के आभारी है. मगर इससे पहले की हुम उनका गला पकडकर उन्हे टीम से बाहर कर दें, उन्हॆ अपने आप सन्यास ले लेना चाहिये.
क्यो घबराते है सचिन और सौरव ,सन्यास से? ये कूप मन्डूक कब लेंगे शिक्षा, दुनिया के श्रेठ बोलर, शेन वार्न या ग्लेन मैक्ग्राथ से? शेन और ग्लेन ने उस समय सन्यास लिया , जब वे अपने करीयर के पीक पर थे. इतिहास के पन्नो मे इन्हे महान खिलाडीयों के रुप मे याद किया जायेगा.
वर्ल्ड कप की पराजय का दोशी कोच के माथे मढ दिया गया. ये तो वो बात हुई कि नाच न जाने और कहे आंगन टेढा.
सच तो ये है कि भारतीय टीम सुपर एट मे पहुचने के लायक ही नही थी. रिकी पोंटिग से ये बिल्कुल सत्य़ कहा है.
आज आस्ट्रेलिया क्रिकेट की दुनिया का बाद्शाह है. क्या कारण है इसका?
उत्तर ये है कि अनेको कारण है, मगर भारतीय खिलाडी इनसे सबसे बडा सबक ले कि आस्ट्रेलियाई खिलाडी ईमानदार है. आस्ट्रेलियाई खिलाडी की ईमानदारी का सबसे बडा सबूत है कि इस देश मे क्रिकेट पर सट्टा लगाना वैध है. आप इन्टर नेट पर जा कर मन चाही रकम जिस पर लगा सकते है. आस्ट्रेलियाई खिलाडी किसी भी मैच मे खेलने से पहले ही यह पता कर सकते है कि कितनो उन पर कितना दांव लगाया है. वो यह भी जानते है कि उनके जीतने या हारने से कितना फ़ायदा-नुकसान हो सकता है. वो इन सब की परवाह किये बगेर सिर्फ़ एक मतलब से मैदान मे उतरते है कि उन्हे मैच जीतना है.
आस्ट्रेलियाई सेलेक्टर भी नये खिलाडियों को मैदान मे उतारती रहती है. आपने भले ही पिछ्ले मैच मे पांच विकेट लिये हो या शतक जमाया हो, आपको अगले मैच मे चयन की गारंटी नही मिल सकती.
आप कहेंगे क्या सारा दोश भारतीय खिलाडियों का है?
नही !
भारतीय मीडिया का बहुत बडा हाथ है भारतीय टीम के पतन मे. वर्ल्ड कप आया नही कि बन गयी " टीम इंडिया" . बजाने लगी विजय की दुंदुभी, ऐसे की जीत लाई हो वर्ल्ड कप . खिलाडियों ने प्रशिक्शण शिविर के बजाय एड शूटिंग मे ज्यादा समय बिताया होगा.
मीडिये ने बडे बडे अक्षरो मे खिलाडियों के एड बिल्बोर्ड खडे कर दिया. उनका स्वार्थ था कि जनता उन्के मैग्जीन ज्यादा खरीदे , उन्के द्वारा विग्यापित टीवी ही खरीदे.
उन्होने एसा माहौल खडा कर दिया, जहां क्रिकेट प्रेम बन गया देश प्रेम.
खिलाडी बन गये सिपाही. मैच खेलना बन गया युद्ध लड्ना.
और भाग्य से यदि भारत पाकिस्तान का मैच हो जाये तो फ़िर कया कहना. मीडिय़ा की चांदी हॊ जाती.
आज आम आदमी किर्केट से परे नही रह सकता है. ये हालत है कि यदि आप किर्केट प्रेमी नही है तो आप देश प्रेमी नही है. सड्क पर चल्ते किसी भी आदमी से पूछ लीजिये कि भारतीय क्रिकेट टीम का कप्तान कौन है? झट से बता देगा. फिर पूछियेगा कि क्या वो भारतीय हाकी टीम के कप्तान का नाम जानते है? नब्बे फ़ीस्दी लोग बगलें झाकेंगें
अरे क्या क्रिकेट ही एकमात्र खेल है जो मीडिय़ा कवर करेगी. कितने लोग जानते है कि भारतीय हाकी टीम अज़लान शाह कप के सेमी फ़ायनल मे पहुन्च चुकी है? लोगो मे उत्साह क्यो नही है?
क्योकि मीडीया जनता को "क्योकि सास भी कभी बहू थी" दिखाने मे मगन है.
भारतीय़ सेल्क्टर ने कम कसर नही छोडी. क्या आपने सोचा है कि कपिल देव , क्रिश श्रीकांत या जवगल श्रीनाथ चयन कर्ता क्यो नही बने? कया इन महान खिलाडियॊं से बढ्कर किसी और को टीम चुनने का अनुभव हो सकता है?
मेरे चिट्ठे को अन्त तक पढ्ने के लिये धन्यवाद.
वसन्त नायडू
क्या सांप सूंघ गया है या लकवा मार गया है?
मुझे वो समय याद है, जब शारजाह मे भारत और पाकिस्तान का मैच आयोजित होता था. आयोजक एवं सट्टेबाज जानबूझ कर शुक्रवार को ही चुनते थे. बहाना ये होता था कि शुक्रवार को सार्वजनिक अवकाश होता है. असलियत मे यह पाकिस्तान टीम का मनोबल उत्साहित करने की एक ओछी हरकत थी. यह एक आम धारणा है कि जुम्मे का दिन पाकिस्तान के लिये भाग्यशाली होता है. उपर से अम्पाय्ररों को खरीद लिया जाता था. याद रहे उस समय थ्रर्ड अम्पाय्रर , स्ट्म्प कैमरा या पिच पर माइक नही हुआ करता था.
पाकिस्तानी क्रिकेटर , खास कर विकेट कीपर परोक्ष रुप से भारतीय बैट्स्मैन को गाली बकते थे. पाकिस्तानी टीम के समर्थक भी गाली गलौज मे पीछे नही रहते थे.
उल्लेखनीय बात यह थी कि इन सब के बावजूद भारतीय टीम मैच जीत कर आती थी.
सवाल ये उठता है कि क्या अंतर है आज की टीम मे और उस समय की टीम मे?
उत्तर एकदम सरल है. पैसा, धन, रोकडा, रुपया, रकम..........आप चाहे किसी नाम से पुकार ले.
उस समय के क्रिकेटर को सट्टेबाज खरीद नही पाये थे. मगर आज स्थिथि कुछ और ही है. टीम का चयन वो लोग करते है जिन्होने बल्ला पकडा ही न हो जिन्दगी मे. खेल मे जीते या हारे, इसका फ़ैसला सट्टेबाज करते है. टीम मे बने रहना इस बात पर निर्भर करता है कि आप किसको जानते है...या कितनी जुगाड लगा सकते है.
यदि आपने सुभाश घई की "इकबाल" नामक चलचित्र देखी हो तो , आप मेरा पक्ष समझ सकते है.
अभी हाल मे ही वर्ल्ड कप मे भारतीय टीम की शर्मनाक हार के बाद जब सौरव गांगुली कोलकाता पहुंचे , तो उनका एक विजेता की तरह स्वागत हुआ.वाह री मूढ जनता ! सचिन तेंदुलकर वर्ल्ड कप से पहले घॊषित करते है कि यदि उनके शरीर ने साथ दिया तो वो अगले वर्ल्ड कप मे भी खेलना चाहेंगे ,
आखिर कब ये तक वरिष्ट खिलाडी जौंक की तरह भारतीय टीम मे चिपके रहेंगे? कब इनको अकल आयेगी कि उमर ढल चुकी है और अल्विदा कहने का समय आ गया है.
सचिन और सौरव ने जो अब तक देश की टीम के लिये किया है वह उल्लेखनीय है. हम उनके योग दान के आभारी है. मगर इससे पहले की हुम उनका गला पकडकर उन्हे टीम से बाहर कर दें, उन्हॆ अपने आप सन्यास ले लेना चाहिये.
क्यो घबराते है सचिन और सौरव ,सन्यास से? ये कूप मन्डूक कब लेंगे शिक्षा, दुनिया के श्रेठ बोलर, शेन वार्न या ग्लेन मैक्ग्राथ से? शेन और ग्लेन ने उस समय सन्यास लिया , जब वे अपने करीयर के पीक पर थे. इतिहास के पन्नो मे इन्हे महान खिलाडीयों के रुप मे याद किया जायेगा.
वर्ल्ड कप की पराजय का दोशी कोच के माथे मढ दिया गया. ये तो वो बात हुई कि नाच न जाने और कहे आंगन टेढा.
सच तो ये है कि भारतीय टीम सुपर एट मे पहुचने के लायक ही नही थी. रिकी पोंटिग से ये बिल्कुल सत्य़ कहा है.
आज आस्ट्रेलिया क्रिकेट की दुनिया का बाद्शाह है. क्या कारण है इसका?
उत्तर ये है कि अनेको कारण है, मगर भारतीय खिलाडी इनसे सबसे बडा सबक ले कि आस्ट्रेलियाई खिलाडी ईमानदार है. आस्ट्रेलियाई खिलाडी की ईमानदारी का सबसे बडा सबूत है कि इस देश मे क्रिकेट पर सट्टा लगाना वैध है. आप इन्टर नेट पर जा कर मन चाही रकम जिस पर लगा सकते है. आस्ट्रेलियाई खिलाडी किसी भी मैच मे खेलने से पहले ही यह पता कर सकते है कि कितनो उन पर कितना दांव लगाया है. वो यह भी जानते है कि उनके जीतने या हारने से कितना फ़ायदा-नुकसान हो सकता है. वो इन सब की परवाह किये बगेर सिर्फ़ एक मतलब से मैदान मे उतरते है कि उन्हे मैच जीतना है.
आस्ट्रेलियाई सेलेक्टर भी नये खिलाडियों को मैदान मे उतारती रहती है. आपने भले ही पिछ्ले मैच मे पांच विकेट लिये हो या शतक जमाया हो, आपको अगले मैच मे चयन की गारंटी नही मिल सकती.
आप कहेंगे क्या सारा दोश भारतीय खिलाडियों का है?
नही !
भारतीय मीडिया का बहुत बडा हाथ है भारतीय टीम के पतन मे. वर्ल्ड कप आया नही कि बन गयी " टीम इंडिया" . बजाने लगी विजय की दुंदुभी, ऐसे की जीत लाई हो वर्ल्ड कप . खिलाडियों ने प्रशिक्शण शिविर के बजाय एड शूटिंग मे ज्यादा समय बिताया होगा.
मीडिये ने बडे बडे अक्षरो मे खिलाडियों के एड बिल्बोर्ड खडे कर दिया. उनका स्वार्थ था कि जनता उन्के मैग्जीन ज्यादा खरीदे , उन्के द्वारा विग्यापित टीवी ही खरीदे.
उन्होने एसा माहौल खडा कर दिया, जहां क्रिकेट प्रेम बन गया देश प्रेम.
खिलाडी बन गये सिपाही. मैच खेलना बन गया युद्ध लड्ना.
और भाग्य से यदि भारत पाकिस्तान का मैच हो जाये तो फ़िर कया कहना. मीडिय़ा की चांदी हॊ जाती.
आज आम आदमी किर्केट से परे नही रह सकता है. ये हालत है कि यदि आप किर्केट प्रेमी नही है तो आप देश प्रेमी नही है. सड्क पर चल्ते किसी भी आदमी से पूछ लीजिये कि भारतीय क्रिकेट टीम का कप्तान कौन है? झट से बता देगा. फिर पूछियेगा कि क्या वो भारतीय हाकी टीम के कप्तान का नाम जानते है? नब्बे फ़ीस्दी लोग बगलें झाकेंगें
अरे क्या क्रिकेट ही एकमात्र खेल है जो मीडिय़ा कवर करेगी. कितने लोग जानते है कि भारतीय हाकी टीम अज़लान शाह कप के सेमी फ़ायनल मे पहुन्च चुकी है? लोगो मे उत्साह क्यो नही है?
क्योकि मीडीया जनता को "क्योकि सास भी कभी बहू थी" दिखाने मे मगन है.
भारतीय़ सेल्क्टर ने कम कसर नही छोडी. क्या आपने सोचा है कि कपिल देव , क्रिश श्रीकांत या जवगल श्रीनाथ चयन कर्ता क्यो नही बने? कया इन महान खिलाडियॊं से बढ्कर किसी और को टीम चुनने का अनुभव हो सकता है?
मेरे चिट्ठे को अन्त तक पढ्ने के लिये धन्यवाद.
वसन्त नायडू
Saturday, May 5, 2007
ये क्रिकेट भी अजीब है
सौरव व सचिन ने भारत को किया मजबूत
आखिरकार कुछ अच्छी खबर। विश्व कप की पराजय के बाद मेरे उपरोक्त चिट्ठे को सचिन और गांगुली ने पढ लिया लगता है :-)
रवी शास्त्री टीम के नये अंतरिम कोच बन गये है। यह एक अच्छी शुरुआत है। मुझे भारतीय हाकी कॊच जोकिम कार्वाल्हो के इस दो टूक बयान से बहुत खुशी हुई। सीनिय़र खिलाड़ियों को ये फ़ियर आफ़ लास दिलाना बहुत जरुरी है। अन्यथा उनके पर्फ़ार्मनस मे ढील आ सकती है।
अरे शास्त्री जी, कार्वाल्हो से कुछ सबक लीजिये और टीम को आगाह करें।
बंगलादेश से वन डे सीरिस जीत कर के ज्यादा शाबाशी न दे कर , शास्त्री को टीम को और अच्छा प्रद्र्शन करने के प्रेरित कर ना चाहिये।
आशा करता हूँ कि इस प्रकार भारतीय क्रिकेट टीम पर लगा हुआ ग्रहण जल्दी हटेगा।
आखिरकार कुछ अच्छी खबर। विश्व कप की पराजय के बाद मेरे उपरोक्त चिट्ठे को सचिन और गांगुली ने पढ लिया लगता है :-)
रवी शास्त्री टीम के नये अंतरिम कोच बन गये है। यह एक अच्छी शुरुआत है। मुझे भारतीय हाकी कॊच जोकिम कार्वाल्हो के इस दो टूक बयान से बहुत खुशी हुई। सीनिय़र खिलाड़ियों को ये फ़ियर आफ़ लास दिलाना बहुत जरुरी है। अन्यथा उनके पर्फ़ार्मनस मे ढील आ सकती है।
अरे शास्त्री जी, कार्वाल्हो से कुछ सबक लीजिये और टीम को आगाह करें।
बंगलादेश से वन डे सीरिस जीत कर के ज्यादा शाबाशी न दे कर , शास्त्री को टीम को और अच्छा प्रद्र्शन करने के प्रेरित कर ना चाहिये।
आशा करता हूँ कि इस प्रकार भारतीय क्रिकेट टीम पर लगा हुआ ग्रहण जल्दी हटेगा।
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