Friday, May 18, 2007
गोल गप्पे
मै एक भोपाली हूँ।
अधिकांश लोग इस शहर को सिटी आफ़ लेक्स या गैस त्रासदी से जानते हो। मेरे बचपन की बेहतरीन यादें यहाँ से जुडी हुई है। प्रचलित आस्था के विपरीत अधिकांश भोपालियॊं "नवाबी शौक" नही पालते :-)
शोले के किरदार सूरमा भोपाली ने टर्म "भोपाली" को एक नया आयाम दिया।
मुझे पसन्द है गोलगप्पे......दही बडे... जी हाँ....मुझे मित्रगण पेटू के नाम से भी जानते है। अब ये संयोग है या वास्तविकता, पता नही, मगर मैने भोपाल के ज्योति टाकीज काम्प्लेक्स मे स्थित चाट की दुकान से स्वादिष्ट गोलगप्पे कहीं नही खाये।
यहाँ पर्थ मे आजकल भारतीय़ दुकानो मे रेडिमेड गोलगप्पा किट मिलता है। विक्ल्प के अभाव मे इसी से काम चला लेते है। हमारी श्रीमती जी हमारे इस शौक से परेशान है। कारण ये है कि इस गोलगप्पे किट से जूझ कर सब तैयार करके खाने बैठे कि पता चला कि आधे से ज्यादा गोल गप्पो कि हालत इतनी खस्ता है कि हल्के से दबाव से चूरण बन जाते है। एकाध गप्पा ही अपनी साख संभाल पाता है।
ऐसे कोसते हुए मै और हमारी मैडम , उस किट को समाप्त करते है। कसम खाते है कि अब यह अड्वेंचर फ़िर न दोहरायेंगे।
मगर जिह्वा ने वश मे आ कर फ़िर वो किट खरीद लेते है।
अब की इंडिया जायेंगे तो पूरी कसर निकालेंगे।
तब तक के लिये गोल गप्पा किट से ही काम चलाना पडेगा।