फ़िल्म ’सिलसिला’ से मुझे पसन्दीदा गीत के बोल
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मै और मेरी तन्हाई अक्सर ये बाते करते है
तुम होती तो कैसा होता ?
तुम ये कह्ती , तुम वो कहती,
तुम इस बात पे हैरां होती ?
तुम उस बात पे कितनी हसंती?
तुम होती तो ऐसा होता ?
तुम होती तो वैसा होता ?
मै और मेरी तन्हाई अक्सर ये बाते करते है.
ये रात है या तुम्हारी ज़ुल्फ़ें खुली हुई है?
है चांदनी ये तुम्हारी नजरों से मेरी राते धुली हुई है,
ये चांद है या तुम्हारा कंगन?
सितारे है या तुम्हारा आंचल?
हवा का झोंका है या तुम्हारे बदन की खुश्बू?
ये पत्तियों की है सरसराहट ?
कि तुमने चुपके से कुछ कहा है?
ये सोचता हू मै कब से गुमसुम
कि जब मुझ को भी ये खबर है
कि तुम नही हो,
कहीं नही हो,
मगर ये दिल है कि कह रहा है
तुम यहीं हो,
यहीं कही हो!
मजबूर ये हालात है
उधर भी
इधर भी,
तन्हाई के एक रात इधर भी
और उधर भी
कहने को बहुत कुछ है
मगर किस से कहें हम?
कब तक यू ही खामोश रहे
और सहे हम
दिल कहता है दुनिया कि हर रस्म उठा दें
दीवार जो हम दोनो मे है वो गिरा दे
क्यो दिल मे सुलगते रहे?
लोगों को बता दे
हां हम को मुहब्बत है ....मुहब्बत है...मुहब्बत
अब दिल मे ये बात
उधर भी है
इधर भी
Thursday, May 17, 2007
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